दरवाज़े पर नींबू मिर्ची लटकाना | जानें अंधविश्वास और लॉजिक (In Hindi)

दरवाज़े पर नींबू मिर्ची लटकाना 

अंधविश्वास 

इससे बुरी नज़र और बुरी ताकत दूर रहती है . 
आपने कई बार देखा होगा कि, अकसर घरों या दुकानों के द्वार पर लोग नींबू-मिर्च लटका कर रखते हैं। इसके पीछे माना ये जाता है कि, इससे घर या दुकान में बुरी शक्तियों का प्रवेश नहीं होता, 
लेकिन इस टोटके से परे इसका एक बेहद खास साइंटिफिक रीज़न भी है, जो ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम। दरअसल, साइंटिफिक तौर पर देखें तो घर में हवा, सुगंध या दुर्गंध का आगमन घर के मुख्य द्वार से ही होता है। 
आमतौर पर घर या दुकान का दरवाजा ऐसे स्थान पर होता है, जहां से पूरे घर या पूरी दुकान में आसानी से प्रवेश हो सके। जाहिर है, जहां से हम घर या दुकान के हर हिस्से में आसानी से प्रवेश करते हैं, वहीं से हवा भी हर हिस्से में प्रवेश कर सकती है। 
ये तो हुई घर में पहुंच की बात। वहीं, नींबू में मौजूद तत्व आसपास के वातावरण को शुद्ध करते हैं और मिर्च का स्वाद ज्वलंत होने के कारण उसे कोई भी ज्यादा देर देखना पसंद नहीं करता। इसलिए वो स्थान नज़र से बच जाता है।

लॉजिक 

नींबू मिर्ची में मौजूद सायट्रिक एसिड होता है , जो किड़े – मकौड़ों को घर में अंदर आने से रोकता है .
आपने कई बार देखा होगा कि, अकसर घरों या दुकानों के द्वार पर लोग नींबू-मिर्च लटका कर रखते हैं।
 
इसके पीछे माना ये जाता है कि, इससे घर या दुकान में बुरी शक्तियों का प्रवेश नहीं होता, लेकिन इस टोटके से परे इसका एक बेहद खास साइंटिफिक रीज़न भी है, जो ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम। 
दरअसल, साइंटिफिक तौर पर देखें तो घर में हवा, सुगंध या दुर्गंध का आगमन घर के मुख्य द्वार से ही होता है। आमतौर पर घर या दुकान का दरवाजा ऐसे स्थान पर होता है, जहां से पूरे घर या पूरी दुकान में आसानी से प्रवेश हो सके। 
जाहिर है, जहां से हम घर या दुकान के हर हिस्से में आसानी से प्रवेश करते हैं, वहीं से हवा भी हर हिस्से में प्रवेश कर सकती है। ये तो हुई घर में पहुंच की बात। 
वहीं, नींबू में मौजूद तत्व आसपास के वातावरण को शुद्ध करते हैं और मिर्च का स्वाद ज्वलंत होने के कारण उसे कोई भी ज्यादा देर देखना पसंद नहीं करता। इसलिए वो स्थान नज़र से बच जाता है।
दरवाज़े पर नींबू मिर्ची लटकाना

ज़मीन पर  बैठ कर खाना खाना 

अंधविश्वास

 ज़मीन पर बैठ कर खाना नहीं खाने से आपके पूर्वज नाराज़ हो जाते हैं . 
पुराने समय में लोग जमीन पर बैठकर खाना खाते थे लेकिन समय के साथ-साथ काफी चीजों में परिवर्तन होने लगा। इन्हीं में से एक था आपके भोजन करने का तरीका। 
वर्तमान समय में, लोग भोजन करने के लिए डाइनिंग टेबल का प्रयोग करते हैं. जिन घरों में डाइनिंग टेबल नहीं होता, वहां पर भी लोग बिस्तर पर बैठकर भोजन करना पसंद करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जमीन पर बैठकर भोजन करने से आपको अद्भुत स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। 

लॉजिक 

ज़मीन पर बैठ कर खाना खाने से आपकी पाचन क्रिया ज़्यादा अच्छा काम करती है और खाना आसानी से पच जाता है .
यह तो आप जानते ही होंगे कि आपका गलत पॉश्चर आपकी बहुत सी परेशानियों का कारण बनता है लेकिन जब आप जमीन पर पैर क्रॉस करके बैठे होते हैं तो आपके शरीर का पॉश्चर एकदम सही होता है। जिसके कारण आपकी कमर, मसल्स और ज्वांइट्स पर अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ता। इस प्रकार आपको कमर में दर्द, घुटनों में दर्द या गर्दन में दर्द आदि शिकायत का सामना नहीं करना पड़ता।
ज़मीन पर  बैठ कर खाना खाना

मंगल और गुरूवार को बाल न धोना 

अंधविश्वास 

इस दिन बाल धोने से बुरे वक्त की शुरुआत होती है 
यह बात मैं बचपन से ही अपनी दादी-नानी और मम्मी से सुनती आ रही हूं कि बृहस्पतिवार को बाल नहीं धोने चाहिए। लेकिन क्यों! जब भी यह सवाल मैं करती तो मुझे ज़ोर से डांटकर चुप करा दिया जाता, और अंत में मैं सिर धोने के लिए एक और दिन का इंतज़ार करती। लेकिन हाल ही में मैंने जाना कि क्यों गुरुवार को बाल नहीं धोने चाहिए।
यदि आप नहीं जानते तो बता दें कि हिन्दू धर्म के विभिन्न देवताओं में से एक देवता बृहस्पति भी हैं, जिन्हें खास रूप से गुरुवार के दिन ही पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि गुरुवार के दिन बाल धो लिए जाएं तो ऐसे में भगवान बृहस्पति की कृपा उस जातक से उठ जाती है।
उसकी ज़िंदगी में धन की हानि होती है एवं साथ ही सुख-समृद्धि के क्षेत्र में भी वह असफलता ही पाता है। लेकिन कुछ लोग इस तथ्य को महज़ अंधविश्वास मानते हैं। परन्तु इस तथ्य के पीछे छिपी कहानी इसे सही साबित करती है।
कहते हैं एक बार एक काफी अमीर शख़्स हुआ करते थे। वे और उनकी पत्नी एक सुखी जीवन व्यतीत करते थे, उन्हें किसी प्रकार की कोई आर्थिक कमी नहीं थी। लेकिन वह महिला दान-पुण्य के मामले में थोड़ी कुटिल थी। एक दिन उनके दरवाज़े पर एक साधु भिक्षा मांगने आए।
 उस समय उस महिला के पति घर पर नहीं थे तो उसने साधु को दरवाज़े से यह कहकर लौट जाने से कहा कि वह घर के कार्यों में कुछ व्यस्त है, कृपा करके वह कुछ क्षण बाद दोबारा आएं। लेकिन यह दृश्य एक बार नहीं कई बार दोहराया गया। रोज़ाना वह साधु वहां आते और भिक्षा मांगते, लेकिन हमेशा की तरह वह स्त्री उन्हें वही बहाना बनाकर जाने को कहती।
 तो एक दिन साधु ने पूछ ही लिया कि बताएं आप कब कार्यों को छोड़ मुझे दान देंगी, तो जवाब में महिला ने कहा कि जब तक मेरे पास ढेरों कार्य हैं, मैं तुम्हें भीक्षा नहीं दे सकती। तो साधु ने उत्तर में कहा कि प्रत्येक गुरुवार को अपने बाल धो लो, तुम इन सभी कार्यों से जल्द ही मुक्त हो जाओगी।
 उस महिला ने साधु की इस सलाह के पीछे छिपी गहराई पर गौर तो नहीं किया, लेकिन नियमित रूप से हर गुरुवार को बाल धोना आरंभ कर दिया। और धीरे-धीरे उनकी सारी संपत्ति पानी के बहाव की तरह खत्म होती चली गई। वे इतने गरीब हो गए कि उनके पास खाने को एक वक्त की रोटी भी नहीं थी।
 तभी एक दिन फिर दोबारा वह साधु वहां आया और भिक्षा मांगी, तो महिला ने बताया कि उनके पास स्वयं के खाने के लिए भी भोजन नहीं है तो वह उन्हें क्या खिलाएगी। बाद में पति-पत्नी दोनों को ज्ञात हुआ कि वह साधु कोई और नहीं वरन् स्वयं भगवान बृहस्पति थे, जो उन्हें दान-पुण्य का पाठ पढ़ाने के लिए वहां आए थे।
 इसी कहानी के आधार पर यह मान्यता उत्पन्न हो गई कि कभी भूलकर भी गुरुवार को अपने केसों में पानी ना डालें। साथ ही भगवान बृहस्पति को प्रसन्न करने के लिए गुरुवार को पीले वस्त्र धारण करें, पीले फूलों से उनकी पूजा करें एवं भोजन में पीले रंग के पकवान ही बनाएं। 

लॉजिक 

पुराने वक़्त में लोग अपने घरों में पानी स्टोर कर के रखते थे . बाल धोने में पानी ज़्यादा खर्च होता है , तो इन दो दिन पानी बचाने के लिए बाल नहीं धोए जाते थे .

ग्रहण के समय बाहर न आना 

अंधविश्वास 

बुरी ताकतें हावी हो जाती है .
ग्रहणकाल में प्रकृति में कई तरह की अशुद्ध और हानिकारक किरणों का प्रभाव रहता है। इसलिए कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें ग्रहण काल के दौरान नहीं किया जाता है।
  • – ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  • – ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।
  • – ग्रहण को खुली आंखों से न देखें। 
  • – ग्रहणकाल के दौरान गुरु प्रदत्त मंत्र का जाप करते रहना चाहिए।
  • – ग्रहण के दौरान या पहले भोजन बना हुआ है तो उसे फेंकना नहीं चाहिए। बल्कि उसमें तुलसी के पत्ते डालकर उसे शुद्ध कर लेना चाहिए। ग्रहण के समाप्ति के बाद स्नान-ध्यान कर घर में गंगाजल छिड़कना चाहिए और फिर जाकर भोजन ग्रहण करना चाहिए।

 लॉजिक 

ग्रहण के वक़्त सूर्य की किरणों से त्वचा के रोग हो सकते हैं साथ ही नंगी आंखों से उसे देखने से लोग अंधे भी हो सकते हैं .
ग्रहण के समय बाहर न आना

दही खा कर घर से निकलना 

अंधविश्वास 

इसे खा कर घर से निकलना शुभ होता है . 
कहा जाता है कि किसी भी कार्य को करने से पहले मुंह मीठा करना चाहिए, कोई मिठाई या दही, शकर खाना चाहिए। यह परंपरा पुराने समय से ही चली आ रही है। आज भी कई लोग घर से निकलने के पूर्व थोड़ा सा दही खाते हैं। साथ ही घर से निकलते समय दही खाने से हमारे सभी नकारात्मक विचार समाप्त हो जाते हैं और हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। सकारात्मक विचार होने से दिन भी सफल रहता है।

लॉजिक 

गर्म मौसम के कारण दही खाने से पेट ठंडा रहता है , साथ ही दही में चीनी मिला कर खाने से शरीर में ग्लूकोज़ की मात्रा बनी रहती है .
दही खा कर घर से निकलना

मंदिर में घंटी बजाना 

अंधविश्वास 

मंदिर में घंटा बजाने से भगवान खुश होते हैं .
स्कंद पुराण के अनुसार मंदिर में घंटी बजाने से मानव के सौ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है बल्कि वैज्ञानिक कारण भी इनकी आवाज को आधार देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

लॉजिक 

ज़्यादातर मंदिरो में तांबे की घंटी लगी होती हैं . तांबें को बजाने से निकलने वाली ध्वनि आस – पास के सुक्ष्म वैक्टीरिया को मारती है , साथ ही शरीर के सातों केंद्रों को एक्टिव कर देती है .
पहला लॉजिक:- घंटी बजाने से देवताओं के समक्ष आपकी हाजिरी लग जाती है। मान्यता अनुसार घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है।
दूसरा लॉजिक:- यह कि घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। मन घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है। मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं। सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है।
मंदिर में घंटी बजाना

रात में नाखून नहीं काटना

 अंधविश्वास 

इसे बुरी किस्मत के साथ जोड़ा जाता है .कई बार बड़े लोग हम से कहते हैं की रात को नाखून नहीं काटना चाहिए नहीं तो अशुभ होता है | कई लोग ये भी कहते हैं की नाख़ून को सिर्फ नाइ के द्वारा ही कटवाया जाना चाहिए नहीं तो अशुभ होता है| 
और इसके साथ ही कुछ जगहों पर ये भी मान्यता है की घर के अन्दर नाख़ून काटने से लक्ष्मी दूर होती है| आज के समय में कई लोग इस बात को हवा में उडा देते हैं जबकि उनके इस शुभ और अशुभ के पीछे बहुत ही सीधा सा वैज्ञानिक और तार्किक कारण जुडा होता है |
 

लॉजिक 

पहला लॉजिक:- नाखून हमारी उंगलियों पर लगी एक मजबूत परत है, जो हमारी कोमल उंगलियों को काफी हद तक बचाकर रखती है। इसीलिए जब हम नाखून काटते हैं, तब हमें इस बात का खास ख्याल रखना पड़ता है कि हमारी उंगलियों को किसी भी प्रकार की हानि ना पहुंचे।पुराने समय में ना तो सभी घरों में बिजली होती थी और ना ही हर समय बिजली आती थी। पुराने समय में लोग सूर्य की रोशनी के अनुसार ही अपने सभी कार्य करते थे। इसीलिए यह कहा जाता था कि नाखून दिन के समय में ही काटें ताकि किसी भी प्रकार की हानि ना हो।


दूसरा लॉजिक:- प्राचीन समय में नेल कटर लोगों के पास उपलब्ध नहीं था। उस समय में लोग नाखून या तो चाकू से काटते थे या किसी धारदार औजार से। और जैसा कि हमने अपने पहले ही वाक्य में बताया है कि पुराने समय में बिजली नहीं होती थी इसलिए पहले के लोग रात के अंधेरे में नाखून काटने से मना किया करते थे जिससे कि हमारे हाथों को किसी भी प्रकार की हानि ना हो।
तीसरा लॉजिक: जब हम नाखून काटते हैं तो नाखून झटककर किसी खाद्य पदार्थ या किसी की आंख में जा सकता है, जो बहुत ही नुकसानदायक हो सकता है। इसीलिए पुराने समय में लोग कई कारणों के चलते नाखून काटने से मना करते थे।
अगर हम सभी बातों का सार देखें तो हम इस नतीजे पर आते हैं कि पुराने समय में बिजली की सही अवस्था ना होने के कारण हमारे बड़े-बुजुर्ग हमें रात में नाखून काटने से मना किया करते थे। परंतु बीतते समय के साथ लोगों ने इसे अंधविश्वास से जोड़कर एक वहम का रूप दे दिया है।
रात में नाखून नहीं काटना

Leave a Comment