मोटिवेशनल दर्द भरा शायरी। By Anurag

 कागज़ को पता है ! कलम की कीमत क्या होती है …. कलम को पता है ! शब्दों की कीमत क्या होती है …. शब्दों को पता है ! लिखने वालों की कीमत क्या होती है …. और लिखने वालों को पता है ! सुनने वालों की कीमत क्या होती है ।

महफिल में मेरे सामने बैठकर हँसे जा रहे है … तिरछी निगाहों से मैं देखता हूँ तो नज़रें भी मुझसे चुरा रहे है ! मैं कैसे समझाऊँ उनको समझ नहीं आ रहा है … कत्ल मेरा वो बार – बार किए जा रहे हैं

बिमारी नहीं … बीमार ख़त्म कराने की थी ! मन की बात उसकी दाढ़ी बढ़ाने की थी … तुम उसे ऐरा – गैरा समझ रहे हो , समझदार तो बहुत है , वो … ! मगर लोगों को मार कर तैयारी उसकी आबादी कम कराने की थी ।

जाम दोनों के भर गये फिर इंतज़ार क्यों कर रहे हो ! पीते वक्त मैं ज्यादा बोलता नहीं फिर बात क्यों कर रहे हो … परेशान क्यों हो इतना जो नज़रें इधर – उधर कर रहे हो … अरे … ! ज़हर मिला दिया क्या मेरे जाम में जो इंतज़ार मेरे पीने का कर रहे हो ।

काँच तोड़कर जोड़ने की वो कह रहा है ! उसको समझाओ कि वो वक्त मोड़ने की कह रहा है … कुछ और बोलता तो शायद मैं छोड़ भी देता ! आखरी साँस है मेरी वो उसे भी छोड़ने की कह रहा है ।

बोतल आखिरी बची है ! मयखाने में … और यहाँ पर लोग पीने वाले हद से ज्यादा हैं । खर्च करने को यहाँ पे किसी में जिगर नहीं … बस मुफ्त की पीने वाले लोग इधर ज्यादा है ।

हासिल करना नहीं तुझे मैं पाना चाहता हूँ … !  जीतने के लिए नहीं , मैं फिर भी एक बार खुदको आज़माना चाहता हूँ … ! और जानता हूँ तू वो गुलाब है … जिसे सब हासिल करना चाहते हैं … मैं काँटा बन कर हिफाज़त में तेरी आना चाहता हूँ।

उठने से पहले वक्त पर सोना होगा … जीतने से पहले … जीत के काबिल होना होगा … मुकाबले में दुनिया खड़ी है तेरे सामने बता तू क्या करेगा … सीखना है तो दुनिया के बीच में जाकर सीख … दूर से अंदाज़ा लगाकर तू क्या करेगा।

क़त्ल करके मेरा वो खून का रंग फ़ीका बता रहा है … गैरों के साथ वो खुद रहा .. ! और उसकी हिम्मत तो देखो .. वो बेवफ़ा मुझे बता रहा है ।

आज अपनी काबीलियत पर फक्र उनको हो रहा है … ! मैं हैरान हूँ थोड़ा क्योंकि ज़िक्र वहाँ मेरा ही हो रहा है । मैं हूँ।

अकेले ही चलना होगा तुझे दुनिया के इस मेले में ! अकेले ही तो आया है तू दुनिया के इस रेले में … बुराई क्या है अकेले चलने में बस इतना बता … अकेला ही तो जायेगा तू दुनिया के झमेले से ….

आईना ऐसा दिखाया है .. कुदरत ने इंसानों को मानो किसी ने चुनौती दी है ! अब इन्हीं गद्दारों को ।

आग कहीं तो लगी होगी , जो धुआँ इतना आ रहा है … मैं नज़रअंदाज़ कर रहा हूँ पर वहां से कोई मुझे बार – बार बुला रहा है … मैं बनना चाह रहा हुँ दुनियां में रहकर दुनियां के जैसा … मगर कमबख़्त ज़मीर मेरा बार – बार मुझे समझा रहा है।

आज अगर तेरे पास कुछ नहीं … तो ग़लती तेरी नहीं … ये ज़माने को भी मानना पड़ेगा … और अगर कल तू मर रहा होगा , बिना कुछ किए … तो ग़लती तेरी ही होगी … ये तुझे भी मानना पड़ेगा … !!!

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