नवीनत शायरी, कविता और रैप पार्ट -3 | Latest Poetry By Anurag

नवीनत शायरी, कविता और रैप पार्ट -3 | Latest Poetry By Anurag

1. ईमानदारी मिट्टी की 

पत्थर में ठोकर मारकर दर्द तुझको हो रहा था ?
तू मरहम लगाकर आराम से सो गया वो अब भी रो रहा था । 
धोखा हुआ उसको तेरे पास आने पर , 
वो थोड़ा खो गया था तेरे साथ आने पर ,
 
खुशी थी उसको कि आज वो तराशा जाएगा … 
क्या खबर थी कि ठोकर वो ही खाएगा । 
यह देखकर मिट्टी को रोना आ गया .. 
मिट्टी ने फिर उसे गले लगा लिया पत्थर को भी अपने में ही मिला लिया । 
पत्थर ने पूछा … ? 
मिट्टी ऐसा क्यों किया ? एहसान मुझ पर तुनै इतना क्यों किया .. ? 
मिट्टी ये बोली ..
बेवफाई मुझ में नहीं अपने में मैने सबको मिलाया सिर्फ तू नहीं … 
नियत में मेरी मक्कारिया बिल्कुल नहीं .. 
सब एक है मेरी नज़र में अकेला तू नहीं … 
मिलना तो सबको मुझमें ही है . एक दिन , 
मैं मिट्टी हूँ..इंसान नहीं .. इंसान नहीं ..
ईमानदारी मिट्टी की || ज़िन्दगी से जुडी कहानी || Honesty soil || By Anurag 
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2. मौत का फरमान

अब उसकी मौत का वक्त धीरे-धीरे आता जा रहा है.. 
और उसे पता ही नही की मौत का फरमान उसका ही सुनाया जा रहा है।
आज सुबह से ही उसे खूब रिझाया जा रहा है…
और खास नही है उसका रूप फिर भी उसे खूब सजया जा रहा है
वो कश्मकश में है, ये सब देखकर की क्यों… 
ये सब मुझपर जुटाया जा रहा है। 
मुझे तो आज तक सबने लूटा ही है , आज क्या .. 
हुआ जो ये सब मुझ पर लुटाया जा रहा है । 
कभी पूछा नहीं किसी ने मुझे और आज इतनी चिंता हो रही है …. 
की सुबह सुबह मुझे नहलाया भी जा रहा है । 
वो आज अपने आप को फ़ंकार समझ बैठा है .. 
क्योंकी हर कोई आकर हैरानी से उसे देखे जा रहा है ।
 
वक्त अखिरी था उसकी खातिरदारी का … 
मगर उसकी समझ में अभी भी नहीं आ रहा है ।
उसकी बेकद्री तो हमेशा हुई थी . शायद … 
कद्र पहली बार देख कर कुछ गिनती के लम्हों को वो जिये जा रहा है । 
वक्त अखिरी था और पूछा गया उससे … 
बता तेरी आखिरी तमन्ना क्या है , आखिरी इच्छा , आखिरी खुवाहिश , तेरी आखिरी चाह क्या है ? 
वो बिना कुछ कहे बस मुस्कुराये जा रहा है । 
क्यों कर रहे है ये लोग खातिरदारी मेरी ….. धीरे धीरे उसकी सब समझ में आता जा रहा है । 
मौत का फरमान || Death decree || By Anurag 
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3. धरती की कुछ अनकही बाते | 

अंबर ने धरती से बड़ी चिंता से पूंछा … 
किया हुआ इतना धुआँ क्यों आ रहा है ? 
धरती ने अंबर से रो कर यही कहा जब सब ने मुझे बर्बाद 
कर दिया तब पुंछने तू आ रहा है .. ? 
अंबर ने धरती से कहा … की क्यों तू इतना परेशान है ? 
धरती ने बिना कुछ बताए अंबर से बोला .. तूने पूछ लिया बस यही तेरा एहसान है । 
अंबर ने धरती से पूंछा .. तू इतना जल क्यों रही है ? 
धरती रौ कर बोली क्योंकी तेरी नजरो की बारिश मुझ पर नहीं हो रही है । 
अंबर ने धरती से पूंछा … तू लहू से लतपत है , ये क्या तेरी हालत क्या अंजाम हुआ है ? 
धरती ने अंबर से बोला .. की तू क्यों इतना हेरान और परेशान हुआ है , 
ये किस्मत है मेरी .. यही मेरा हारा हुआ जुआ है । 
अंबर ने धरती से पूंछा … की तुने तो यहां … 
सब को दर्द सहकार भी दिया है । 
फिर क्यों लोगो ने तेरा यहां कत्लेआम किया है ? 
धरती उदास होकर बोली … सबको मैंने जितना भी दिया है । 
वो सब बेकार हुआ है .. 
मैने दर्द सहा बेशक । मगर मेरा यहां बरा इस्तेमाल हुआ है ।
अंबर ने धरती से अखिर मे पुछा .. तू कब तक सहेगी तू कब तक जलेगी ? 
वजह क्या है तेरी जो तब तक लड़ेगी ? 
धरती सुन्न होकर बोली … खामोशी है मेरी मजबूरी है मेरी … 
न खुशी है मेरी , न इच्छा है मेरी मै क्या लडुंगी मै क्या लडुंगी 
मै बस सहूंगी मै बस सहूंगी ।
धरती की कुछ अनकही बाते || Some untold things of the earth || By Anurag 
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4. क्रोधित प्रकर्ति 

दिखा तू अपना रूप अब .. 
की तू दिखा वजूद अब 
निकाल तू इनकी अकड़ .. 
और गला पकड़ पकड़ 
ये सांप आस्तीन के  
न है किसी भी दीन के 
तू छोडेगी इनहे अगर .. 
ये मारेंगे तुझे मगर । 
तू शक्तियाँ अपनी दिखा . 
और गलतियां इनकी बता 
ये गलतियों के पुतले है . 
इन पुतलो को जकड़ जकड़ 
ये भूले हैं ओक़ात अब … 
तू सिखा इनको सबक , 
की काया तू इनको दिखा .. 
अपनी विकट विकट विकट ।
की आसमान फाड़ दे ..
 हो विपदा जो भी आन दें , 
कर जलाशयों में हलचल .. 
और मचा उथल पुथल 
लुटेरे है ये तेरे ही .. 
तू इनपे न विश्वास कर 
बरबाद इन्होने तुझे किया .. 
तू अब इन्हें बरबाद कर 
की धरती आज रो रही .. 
वजूद अपना खो रही . 
दिखा तू अपना क्रोध अब .. 
अभी यहीं यहां इधर 
ये बाज नहीं आयेंगे .. 
ये धीट नहीं जाएंगे , 
ये है फकीरी भेस मैं .. 
लुटेरे डाकू और ठग |

प्रकृति का गुस्सा || Angry Nature || By Anurag 
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5. बचपन की यादें 

वो बचपन शानदारी का मैं अब कहाँ से लाऊं , 
वो जिद्द की बेशुमारी थी मैं अब कहाँ से लाऊं । 
वो चाहत रेजगारी की में अब कहाँ से लाऊं , 
वो कीमत छोटे यारों की मैं अब कहाँ से लाऊं । 
वो रोना छोटी बातों पे मैं अब कहाँ से लाऊं , वो हंसना छोटी बातों पे मैं अब कहाँ से लाऊं । 
वो रूठना मेरा और रूठकर दूर बैठ जाना , 
मैं रूठा आज भी हूं 
पर मनाने वाला मैं अब कहाँ से लाऊं । 
ये दौर नया है मेरा मैं वो दौर अब कहाँ से लाऊं , 
आजाद था मैं हर जिम्मेदारी से वो शोर मैं अब कहाँ से लाऊं । 
इन खाली जेबो मे अब वो सिक्के कहाँ से लाऊं , 
उन सिक्कों से बड़े महल बनाने की वो सोंच मैं अब कहाँ से लाऊं । 
मैं अब छोटी बातों पे वो संतुष्टि कहाँ से लाऊं 
समोसे और जलेबी मेरे दादा की मैं अब कहाँ से लाऊं ,
की गलती मेरी होती थी फिर भी 
बचाते थे मुझे निस्वार्थ दादी दादा का वो प्यार में अब कहाँ से लाऊं । 
वो किस्से वो रागनियां मैं अब कहाँ से लाऊं , सर्द रात में 
उनकी वो लंबी कहानियां मैं अब कहाँ से लाऊं । 
आज हाथ खाली हैं मेरे वो पिछला वक्त कहाँ से लाऊं . 
वो बेफिक्री वो बेकद्री वो लड़कपन्न कहाँ से लाऊं । 
बड़ी ही शानदारी से गुजरा वो अपना वक्त कहाँ से लाऊं , 
धुंध है हर तरफ , मैं वो बचपन कहाँ से लाऊं …

बचपन की यादें ||  ज़िन्दगी से जुडी कहानी || Childhood Memories || By Anurag 
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6. इंसानियत 

वो बीज बन जो मिट्टी मैं खुद को मिलाकर पेड़ को बनाता है , 
मैं वो खून बन जो किसी की सांसे वापस कराता है । 
वो इंसान बन जो भूँखा खुद रहकर रोटी का इंतजाम सबका कराता है , 
वो पानी बन जो प्यास सबकी बुझाता है । 
वो कड़क धूप नहीं जो जिस्म लोगो का जलाती है , 
वो पहली किरण बन जो सबको ही अपनी तरफ लुभाति है । 
वो इमारतें नहीं जो खुद को बड़ा बताती है , 
वो मिट्टी बन जो ऊंची इमारतों को खुद में ही मिलाती है । 
वो शाहजहाँ नहीं जिसने अपनी शान की खातिर एक मकबरे को बनवाया था , 
वो मांझी बन जिसने लोगो की खातिर चट्टाने चीर कर रास्ता बनाया था …
इंसानियत ||  ज़िन्दगी से जुडी कहानी || Humanity || By Anurag 
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7. दिल की चाहत 

मुझे सागर नहीं चाहिए पूरा उसे तुम रखलो , 
मगर … प्यास मेरी जितनी है बस उतना पानी चाहिए । 
बगीचा पूरा का पूरा ये तुम रखलो , 
मगर … नजारा रोज़ मुझको इसका होना चाहिए । 
अकेला हूं मैं आज तक मुझे शिकवा नहीं हुआ , 
मगर … अकेला वो भी मेरी तरहा होना चाहिए ।
चाँद तारों को तो रखना मेरे बस की बात नहीं , 
मगर नजारा रोज़ रोज़ मुझको इनका चाहिए । 
सारे गुलदानों को तुम अपने पास ही रखलो , 
मगर गुलदानो से मुझे हर रोज एक फूल चाहिए । 
काली घटा और बादलों से मैं रोज मित्रता करता हूं , 
की … मुझे बारिश नहीं बस थोड़ी बूंदे चाहिए । 
जिंदगी बहुत लंबी है मैं इंतजार कैसे करूंगा 
लगता है अखिरी वक्त आज ही में लाकर रहूंगा , 
वक्त से मैं बस इतने लम्हे मांगता हूं 
आखिरी बार तुझे देखू वो चन्द सांसे चाहिए । 
मुझे कुदरत से बस इतनी रहमत चाहिए 
देखू मैं जब भी उसे तो वक़्त रुकना चाहिए ।

दिल की चाहत ||  ज़िन्दगी से जुडी कहानी || Heart’s desire || By Anurag 
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