ज़रूरतों के सामने ख्वाहिशों की बात मत कर …. अगर खुदा को मानता है ! तो पैगम्बरों की बात मत कर …. कटाना ही है ! तुझको सर अगर यहाँ पर …. सिर कटा शौक से …. मगर जीने की बात मत कर ।
मुझे सूरज डूबने से कोई दिक्कत नहीं है …. ! चाँद नहीं निकला मुझे ये परेशानी है …. सूरज तो वक्त का पाबंद है , वो वक्त पर निकल जाएगा …. चाँद इतना पाबंद क्यों नहीं है … ? मुझे ये परेशानी है.. ।
इशारा किया जो मैने तो नज़रें चुराने लगे …. नज़रें मिलायी मैने तो वो शर्माने लगे … चन्द कोशिशों के बाद आखिर बात तो हुई , मगर बात ये हुई की अब वो घर जाने लगे ..।
हवाओं से कह दो कि वो अब हमारे पास न आया करें …. मौसम गमों का है … वो आकर इस मौसम को ज़ाया न करें …।
ये कैसे यारों के साथ बैठा दिया मुझको खुदा … ! शराब पीते ही झूठी ये कसम खाते हैं … और अभी तो बची है … दो बोतल पूरी दारू की ! कि दारू से ज्यादा चकना भर के ये लोग खाते हैं
दाम गरीबों के लिए बज़ारों में बहुत ज्यादा है … चोर – उचक्कों का काम भी उधर ही ज्यादा है … ! बचकर रहा करो ऐसे सौदागरों से यारों … इनकी रगों में ही गरीबों का खून ज्यादा है ।
हंगामा तब हुआ जब बाज़ार से वो रोता हुआ आया है … रंजिशें गम की और फरियाद साथ लाया है ! जिस बाज़ार में आज हर जगह रौनक महफिलों की सजी थी … उस बाज़ार से ही वो खाली हाथ आज आया है ।
ताकत मिली उसे तो मनमानी सरेआम कर रहा है ! चोला फकीर का पहन कर वो ज़माने में कत्लेआम कर रहा है ।
पेड़ काट कर इमारतें बनाने की बात कर रहा था … ! जंगल सारे बर्बाद किये , वहाँ शहर बनाने की बात कर रहा था … अजीब फितरत है ! इंसान की इस दुनिया में दोस्तों … इमारतें और शहर हटा कर फिर से गुलशन बनाने की बात कर रहा था ।
बर्बाद करके रोटी को वो खुद को रहीसज़ादा समझ रहा है .. उढ़ा कर पैसा इधर – उधर खुद को अमीरज़ादा समझ रहा है … दौलत , शोहरत उसको खैरात में मिल चुकी हैं … ! मक्कारी दिखा कर वो , खुद को मगरूर समझ रहा है ।
बोलने से पहले शब्दों की औकात तो जान लेता … ! मुँह खोलने से पहले थोड़ा दिमाग तो खर्च कर लेता … मौका दे दिया तूने मुझे बोलने का … तो सुन मगर ! कान में तेल तो डाल लेता ।
अब तो लिखने वाला भी डरा – डरा सा लगता है … जो लिखे भी तो उसे अपना वक्त जरा सा लगता है … दूध पीकर साँप हमे ही काट रहा है … साँप ये मुझे पला – पला सा लगता है ….
फटे कपडे देखकर वो गरीब का अन्दाजा गिरा हुआ लगा रहा है . गरीब की खुद्दारी तो देखो वो फिर भी मुस्कुरा रहा है ..
खंण्डरों में जाकर वीरानियों में रह … अन्धेरी रातों मे जाकर कहीं तनहाइयों में रह … घड़ी के कांटे पीछे कर रहा है … पागल ! अगर दुनिया में रहना है ! तो परेशानियों में रह ।
सिर्फ रौशनी नहीं रौनक के लिए चमक भी शामिल होती है …. चट्टानें टिकी हैं , जिनके दम पर … उन ज़रों की भी कीमत होती है ।
देखता हूँ जहाँ तक मेरी नज़र जाती है …. बर्बादियाँ ही बर्बादियाँ नज़र आती हैं …. जानता हूँ की सियासी खेल है ये सारा …. मगर खबर देखता हूँ तो सियासत ठीक नज़र आती है ।
कश्तियों में बेठकर जहाजो की बात करता है … बस्तियों में बैठकर महलों की बात करता है ….।
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